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वन॑स्पते वी॒ड्व᳖ङ्गो॒ हि भू॒याऽअ॒स्मत्स॑खा प्र॒तर॑णः सु॒वीरः॑। गोभिः॒ सन्न॑द्धोऽअसि वी॒डय॑स्वास्था॒ता ते॑ जयतु॒ जेत्वा॑नि ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वन॑स्पते। वी॒ड्व᳖ङ्ग॒ इति॑ वी॒डुऽअ॑ङ्गः। हि। भू॒याः। अ॒स्मत्स॒खेत्य॒स्मत्ऽस॑खा। प्र॒तर॑ण॒ इति॑ प्र॒ऽतर॑णः। सु॒वीर॒ इति॑ सु॒ऽवीरः॑। गोभिः॑। सन्न॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽन॑द्धः अ॒सि॒। वी॒डय॑स्व। आ॒स्था॒तेत्या॑ऽस्था॒ता। ते॒। ज॒य॒तु॒। जेत्वा॑नि ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:29» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजप्रजा धर्म इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वनस्पते) किरणों के रक्षक सूर्य के समान वन आदि के रक्षक विद्वन् राजन् ! आप (अस्मत्सखा) हमारे रक्षक मित्र (प्रतरणः) शत्रुओं के बल का उल्लङ्घन करने हारे (सुवीरः) सुन्दर वीर पुरुषों से युक्त (वीड्वङ्गः) प्रशंसित अवयववाले (हि) निश्चय कर (भूयाः) हूजिये, जिस कारण आप (गोभिः) पृथिवी आदि के साथ (सन्नद्धः) सम्बन्ध रखने को तत्पर (असि) हैं, इसलिए हम को (वीडयस्व) दृढ़ कीजिए (ते) आप का (आस्थाता) युद्ध में अच्छे-अच्छे प्रकार स्थिर रहनेवाला वीर सेनापति (जेत्वानि) जीतने योग्य शत्रुओं को (जयतु) जीते ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य के साथ किरणों और किरणों के साथ सूर्य का नित्य सम्बन्ध है, वैसे राजा, सेना तथा प्रजाओं का सम्बन्ध होने योग्य है। जो सेनापति आदि जितेन्द्रिय शूरवीर हों तो सेना और प्रजा भी वैसी ही जितेन्द्रिय होवे ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाधर्मविषयमाह ॥

अन्वय:

(वनस्पते) किरणानां रक्षकः सूर्य इव वनादीनां पालक विद्वन् राजन् ! (वीड्वङ्गः) प्रशंसिताङ्गः (हि) (भूयाः) भवेः (अस्मत्सखा) अस्माकं मित्रम् (प्रतरणः) शत्रुबलस्योल्लङ्घकः (सुवीरः) शोभना वीरा यस्य सः (गोभिः) पृथिव्यादिभिः (सन्नद्धः) तत्परः सम्बद्धः (असि) (वीडयस्व) दृढान् कुरु (आस्थाता) समन्तात् स्थिरः सेनापतिः (ते) तव (जयतु) (जेत्वानि) जेतुं योग्यानि शत्रुसैन्यानि ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वनस्पते ! त्वमस्मत्सखा प्रतरणः सुवीरो वीड्वङ्गो हि भूयाः। यतो गोभिः सन्नद्धोऽस्यतोऽस्मान् वीडयस्व त आस्थाता वीरो जेत्वानि जयतु ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्येण किरणानां किरणैः सूर्यस्य नित्यः सम्बन्धोऽस्ति, तथा राजसेनाप्रजानां सम्बन्धो भवितुं योग्यः। यदि सेनेशादयो जितेन्द्रियाः शूरवीराः स्युस्तर्हि सेनाः प्रजा अपि तादृश्यो भवेयुः ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्याबरोबर किरणांचा व किरणांबरोबर सूर्याचा नित्य संबंध असतो तसा राजा, प्रजा व सेना यांचा संबंध असावा. जे सेनापती जितेंद्रिय शूरवीर असतात तशी सेना व प्रजाही जितेंद्रिय असावी.